दरख्तों पर कागज़ पर किताबो पर दीवारों पर लिखा हूं | हिंदी शायरी

"दरख्तों पर कागज़ पर किताबो पर दीवारों पर लिखा हूं मैं । मैं उबलता इश्क़ हु , थरथराती शाम को उफनती आग की तरह जला हूँ मैं ।"

 दरख्तों पर कागज़ पर किताबो पर
 दीवारों पर लिखा हूं मैं ।
मैं उबलता इश्क़ हु , थरथराती शाम को
उफनती आग की तरह जला हूँ मैं ।

दरख्तों पर कागज़ पर किताबो पर दीवारों पर लिखा हूं मैं । मैं उबलता इश्क़ हु , थरथराती शाम को उफनती आग की तरह जला हूँ मैं ।

#दरख़्तों पर कागज़ों पर
#राज मस्ताना

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