अमावस्या की काली अंधेरी रात को हम शहर से अपने घर को जा रहे थे
यूं लगा मुझे दो आदमी जैसे मेरे पास आ रहे थे
अंधेरी रात में डर भी लग रहा था
सो रही थी दुनिया सारी
बस मैं ही जग रहा था
पड़ते थे जब पैर ज़मीं में धप धप की आवाज़ आती थी
अनजाना सा शोर दिल में मेरे वो जगाती थी
चल रहे थे हम सफर में मन में भी डर था
पहुंच गए थे गांव अपने कुछ ही दूर मेरा घर था
पहुंचे अपने घर में डर से बचते बचते हम
संतोष हुआ दिल में मेरे आ गए घर कम से कम
©Ravi Prakash
अमावस्या की रात