ऊँचे दर-ओ-दीवार बड़ी मिल्कियत के आगे,,
मैं छोटा ही ठीक हूँ तुम्हारी हैसीयत के आगे ।।
वो जो मुहब्बत में ख़ुद को हारती जा रही थी,,
अपना सब कुछ हार गई बुरी नीयत के आगे ।।
सुनो ना मेरी तुम्हारी सारी बात ठीक है लेकिन,,
कोई मज़हब बड़ा नहीं है इंसानियत के आगे ।।
मैं ज़िंदा रहा तो कोई हाल पूछने भी नहीं आया,,
गुज़रा तो सब खड़े मिले मेरी वसीयत के आगे ।।
मैं ने तुमको चुना था अपना सब कुछ छोड़ कर,,
आज दुनियाँ हँस रही है मेरी मज़लूमियत के आगे ।।
©Abhijeet Thakur
#rayofhope