White फ़ासलों की दीवार
वो इश्क़ जो दिलों में पला था,
मज़हब और तहज़ीब की जंजीरों में फँसा था।
ख़्वाबों की तामीर थी उनके निगाहों में,
मगर क़िस्मत ने फ़ासले लिख दिए राहों में।
हर मुलाक़ात में छुपी थी अलविदा की चुभन,
बातों में थी मोहब्बत, मगर आँखों में घुटन।
दिल करता था सब छोड़कर पास आ जाएँ,
पर रिवायतों की रस्में, हसरतों पर हावी हो जाएँ।
उसकी दुआओं में मैं था, मेरी इबादत में वो,
मगर दरमियान खड़ी थीं क़ायदे की सल्तनतें, बेवजह ख़ुदा के नाम पर रो।
दिलों की सरहदें क्या समझती हैं मज़हब का हिसाब,
मगर समाज की नज़र में ये इश्क़ था बस एक ख्वाब।
रातों में रो-रो कर हमने सितारों से पूछा,
क्या मोहब्बत करना है गुनाह, या है ये सबका बहाना झूठा?
मुक़द्दर ने मिलाया था, दुनिया ने जुदा कर दिया,
फूलों को खिलने से पहले ही ख़िज़ाँ में तब्दील कर दिया।
अब बस यादें हैं, वो लम्हे कभी भुलाए नहीं जाते,
हसरतें दिल में दबी हैं, मगर ये अश्क़ रुकते नहीं थमते।
शायद किसी और जहां में वो ख़्वाब मुकम्मल हों,
जहाँ दिलों में फ़र्क़ नहीं, बस मोहब्बतें ही हों।
©Niaz (Harf)
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