कोई मिला था अंजान बन कर अपना सा बन गया है अब नहीं | हिंदी Poetry

"कोई मिला था अंजान बन कर अपना सा बन गया है अब नहीं करता है मन बिछड़ने का ना जाने मिलेंगे दोबारा हम कब रोकना चाहा रुक ना पाए बढ़ गए कदम इश्क़ की ओर इतने अब हम वही करने लगे है उनका करने को चाहता है जो मन आपका हमदर्द ©Kiran Pawara"

 कोई मिला था अंजान बन कर
अपना सा बन गया है अब

नहीं करता है मन बिछड़ने का
ना जाने मिलेंगे दोबारा हम कब

रोकना चाहा रुक ना पाए 
बढ़ गए कदम इश्क़ की ओर इतने
अब हम वही करने लगे है
उनका करने को चाहता है जो मन 



आपका हमदर्द

©Kiran Pawara

कोई मिला था अंजान बन कर अपना सा बन गया है अब नहीं करता है मन बिछड़ने का ना जाने मिलेंगे दोबारा हम कब रोकना चाहा रुक ना पाए बढ़ गए कदम इश्क़ की ओर इतने अब हम वही करने लगे है उनका करने को चाहता है जो मन आपका हमदर्द ©Kiran Pawara

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