कोई मिला था अंजान बन कर
अपना सा बन गया है अब
नहीं करता है मन बिछड़ने का
ना जाने मिलेंगे दोबारा हम कब
रोकना चाहा रुक ना पाए
बढ़ गए कदम इश्क़ की ओर इतने
अब हम वही करने लगे है
उनका करने को चाहता है जो मन
आपका हमदर्द
©Kiran Pawara
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