इस दुनियां में
सच कहने की
हिम्मत करना ठीक नहीं
काट के बेडी
पँख फैलाना
पिंजरे के पँछी ठीक नहीं
हाँ हाँ कह कर
बस अपना लो
जो भी रीति कहती है
ज़बाँ खोल
आवाज़ उठाना
ए बुद्धिजीवी ठीक नहीं
जो होता आया है
वो करते जाना तू ख़ामोश
प्रश्नों का द्वंद यूँ करना
ये दुःसाहस ठीक नहीं
आँख मूंद के चल उनपर
जो पथ पुरखों ने बनाएं हैं
नीव नयी ,नव पथ बनाना
नव निर्माता ठीक नहीं
✍️Monika kakodia 'बेबाक शायरा'
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