बालों को छाया,आंखों को रौशनी,मुस्कुराहट को सबेर कह

"बालों को छाया,आंखों को रौशनी,मुस्कुराहट को सबेर कहूं। कब छोड़ो,जो खुद में एक ग़ज़ल है उसके लिए क्या शेर कहूं।। ©Faiz siddique"

 बालों को छाया,आंखों को रौशनी,मुस्कुराहट को सबेर कहूं।
कब छोड़ो,जो खुद में एक ग़ज़ल है उसके लिए क्या शेर कहूं।।

©Faiz siddique

बालों को छाया,आंखों को रौशनी,मुस्कुराहट को सबेर कहूं। कब छोड़ो,जो खुद में एक ग़ज़ल है उसके लिए क्या शेर कहूं।। ©Faiz siddique

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