हो राक्षस पर ख़ुद को मानव कहते हो तुम निर्दोष बेज | हिंदी कविता

"हो राक्षस पर ख़ुद को मानव कहते हो तुम निर्दोष बेजुबान को मार, कैसे रह लेते हो तुम उस भूखे ने तुम लोगो पर भरोसा किया तुमने तो इंसानियत को भी शर्मसार किया कितनी आह भरी और कितना दर्द हुआ होगा ऐ मानव तूने तो सपने मे भी नहीं सोचा होगा विनिता"

 हो राक्षस पर ख़ुद को मानव कहते हो तुम

निर्दोष बेजुबान को मार, कैसे रह लेते हो तुम

उस भूखे ने तुम लोगो पर भरोसा किया

तुमने तो इंसानियत को भी शर्मसार किया

कितनी आह भरी और कितना दर्द हुआ होगा

ऐ मानव तूने तो सपने मे भी नहीं सोचा होगा

विनिता

हो राक्षस पर ख़ुद को मानव कहते हो तुम निर्दोष बेजुबान को मार, कैसे रह लेते हो तुम उस भूखे ने तुम लोगो पर भरोसा किया तुमने तो इंसानियत को भी शर्मसार किया कितनी आह भरी और कितना दर्द हुआ होगा ऐ मानव तूने तो सपने मे भी नहीं सोचा होगा विनिता

#RIPHUMANITY

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