कुण्डलिया :- नीले अम्बर के तले , जपते राधा नाम । ब | हिंदी कविता

"कुण्डलिया :- नीले अम्बर के तले , जपते राधा नाम । बारिश की हर बूँद से , बचा रहे घनश्याम ।। बचा रहे घनश्याम , भीग मत जाये राधा । होगा जब संताप , कष्ट मुझको भी आधा ।। छाता लूँ मैं तान , दूर हैं काफी टीले । छाये हैं अब मेघ , न दिखते अम्बर नीले ।। नीले अम्बर के तले , दोनों अन्तर ध्यान । दिव्य शक्ति दोनो यहाँ, कहते सभी सुजान । कहते सभी सुजान, इन्हीं की महिमा न्यारी । सबके दुख संताप , हरे हैं नित बनवारी ।। रिमझिम पड़ी फुहार , हो गये दोनो गीले । छाता ले अब अब तान , नहीं अब अम्बर नीले ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR"

 कुण्डलिया :-
नीले अम्बर के तले , जपते राधा नाम ।
बारिश की हर बूँद से , बचा रहे घनश्याम ।।
बचा रहे घनश्याम , भीग मत जाये राधा ।
होगा जब संताप , कष्ट मुझको भी आधा ।।
छाता लूँ मैं तान , दूर हैं काफी टीले ।
छाये हैं अब मेघ , न दिखते अम्बर नीले ।।

नीले अम्बर के तले , दोनों अन्तर ध्यान ।
दिव्य शक्ति दोनो यहाँ, कहते सभी सुजान ।
कहते सभी सुजान, इन्हीं की महिमा न्यारी ।
सबके दुख संताप , हरे हैं नित बनवारी ।।
रिमझिम पड़ी फुहार , हो गये दोनो गीले ।
छाता ले अब अब तान , नहीं अब अम्बर नीले ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

कुण्डलिया :- नीले अम्बर के तले , जपते राधा नाम । बारिश की हर बूँद से , बचा रहे घनश्याम ।। बचा रहे घनश्याम , भीग मत जाये राधा । होगा जब संताप , कष्ट मुझको भी आधा ।। छाता लूँ मैं तान , दूर हैं काफी टीले । छाये हैं अब मेघ , न दिखते अम्बर नीले ।। नीले अम्बर के तले , दोनों अन्तर ध्यान । दिव्य शक्ति दोनो यहाँ, कहते सभी सुजान । कहते सभी सुजान, इन्हीं की महिमा न्यारी । सबके दुख संताप , हरे हैं नित बनवारी ।। रिमझिम पड़ी फुहार , हो गये दोनो गीले । छाता ले अब अब तान , नहीं अब अम्बर नीले ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

कुण्डलिया :-
नीले अम्बर के तले , जपते राधा नाम ।
बारिश की हर बूँद से , बचा रहे घनश्याम ।।
बचा रहे घनश्याम , भीग मत जाये राधा ।
होगा जब संताप , कष्ट मुझको भी आधा ।।
छाता लूँ मैं तान , दूर हैं काफी टीले ।
छाये हैं अब मेघ , न दिखते अम्बर नीले ।।

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