नदियाँ रोयीं पर्वत रोये, फूट फूट कर करुणा रोयी ।
श्वेत कबूतर सरहद वाले रोये भारत माता रोयी ।
जो जाते-जाते भी जग के, हृदयों को निर्मलता देकर
मानवता का पाठ पढ़ा दे, ऐसा अटल निराला होगा।।
जहाँ झूठ का पहरा गहरा, और निराशा की आँधी हो ।
राजनीति छल से प्रेरित हो, लोभी सत्ता मदमाती हो ।
ऐसे गहन अंधेरे में भी, जो नैतिकता के शस्त्रों से
सहज सत्य को जीत दिला दे, ऐसा अटल निराला होगा ।।
कुछ तो सपने सोती आँखों मे ही पलते खो जाते हैं
जगती आंखों वाले सपने अश्रु धार में धो जाते हैं ।
किन्तु समय की बंजर धरती, को श्रम से उर्वरता देकर
जो सपनो के सुमन खिला दे, ऐसा अटल निराला होगा ।।
प्रेम जगत की मूल प्रकृति है, प्रेम जगत की अभिलाषा है ।
प्रेम अहिंसा का पूरक है, प्रेम समर्पण की भाषा है ।
किन्तु विरोधी आचरणों के, सम्मुख स्नेहिल मुस्कानों से
जो पत्थर को भी पिघला दे, ऐसा अटल निराला होगा।।
आने वाला जाएगा भी, अटल सत्य है अटल रहेगा ।
जन्म मृत्यु के बीच धार में, कौन रुका है कौन रुकेगा ।
किन्तु मृत्यु के शून्य प्रान्त पर, हँसते-हँसते विजय प्राप्त कर.
जो जीवन को अमर बना दे, ऐसा अटल निराला होगा ।।
©RJ राहुल द्विवेदी 'स्मित'
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