आँसू / अश्क
बिना मेरी इज़ाजत बाहर तुम क्यों आते हो ..
मोल मेरा तुम कमज़ोर तुलवाते हो
जरूरत नहीं तुम्हारी इस निर्मम संसार को ..
कुरुरता भरे स्वार्थ के भड़ार को ..
जो देते नकारात्मक ऊर्जा तुम्हे
सर्प सी विषैली जुबान लिए
दो मुँहे चरित्र पे झुठी मुस्कान लिए ..
क्या तुम मुझे
इनके सामने
बेबस बतलाते हो ....
करुणा मेरी ये जाने
शालीनता मेरी ये क्या पहँचाने ..
दिखवा नहीं मैं कर सकती
इन जैसा नहीं बन सकती ..
ये क्या जाने त्याग मेरे
कहानी मेरी ..
किरदार मेरे ..
जो लिखने चली हूँ
मैं मीलों दूर से
छोड़ घर बार मेरे ..
बस इतना सा हक़ तुझपे देना
आँखों में नमी नहीं
कलम में हर्फ़ पिरोना...
©A Saran
#Parchhai