गुड़िया
कहती है तुम भी सजती सावर्ती अगर मेरी तरह तो तुम भी होती बिल्कुल मेरी तरह आकर्षक
परन्तु आकर्षक होना बना सदैव क्षणिक
मुझे बनना था बर्फ की तरह कठोर
क्योकि सूरज की किरणे जब भी उससे टकरायी तो उसमे आया पिघलने का गुण
सरलता से बहने का गुण ।
किरणों का प्रभाव जब भी ज्यादा हुआ तो उसने कर दिया स्वयं को परिवर्तित वाष्प में जिससे सीखा उसने आसमान में उड़ान भरना
परन्तु जब वाष्प ने वाष्प से जुड़ना सीखा तो उसने सीखा बादल बन वर्षा के बूदों में परिवर्तित होना और परिवर्तित करना एक अंकुर को अन्न में।
©Neha Aabha Nautiyal