ए हवा वो जानी पहचानी महक हमने दूसरे शहर मोड़ दी,
फासले बढ़े इस कदर दरमियान के
जो रौशनदान खुलता था जिस दहलीज़ की तरफ हमारी,
हमने वो दहलीज़ ही छोड़ दी।।
- राहुल कान्त
©Raahul Kant
ए हवा वो जानी पहचानी महक हमने दूसरे शहर मोड़ दी,
फासले बढ़े इस कदर दरमियान के
जो रौशनदान खुलता था जिस दहलीज़ की तरफ हमारी,
हमने वो दहलीज़ ही छोड़ दी।।
- राहुल कान्त
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