मन में एक उथल पुथल सी थी
अरमां भी थे कुछ बेकरार
जब टकराईं नज़रें तुमसे
जब हुए रूबरू पहली बार
जब पहली बार मिले थे हम
उस दीद की ईद मुबारक हो।।
यूं तो पहले भी कई दफ़े
गुफ्तार हुई थी दोनों में
इस मुलाक़ात के लिये लेकिन
सरगोशी थी दिल के कोनों में
ज़बां लरज़ रही थी कुछ कहने में
उस दीद की ईद मुबारक हो।।
दिन के लंबे इंतेज़ार के बाद
यकायक तुमसे जब नज़रें मिलीं
गर्मी की तपिश से छुटकारा देने
मानो बारिश की फुहारें खिलीं
दुआ थी कि सुकूं का पल यहीं थम जाए
उस दीद की ईद मुबारक हो।।
कुछ पल की मुलाक़ात थी लेकिन
राहत एक अरसे का दे गयी
न बातें ही कुछ ख़ास हुई लेकिन
सुकून सदियों का दे गयी।
हो ही गए थे इक दूजे के जिस दिन
उस दीद की ईद मुबारक हो।।