मैं कहीं दूर निकल जाने को था फिर यूं लगा कि वो आने | हिंदी शायरी

"मैं कहीं दूर निकल जाने को था फिर यूं लगा कि वो आने को था मैंने उम्मीद सारी छोड़ रखी थी भूल गया कि कोई बुलाने को था मेरी ग़ज़ल ने आंख भर दिए मेरे वही, जिसपे वो मुस्कुराने को था तमाम उम्र हूं मैं इंतज़ार में मशगूल किसी बहाने वो मिलने आने को था कर ली अमावस की स्याह रात से दोस्ती फिर यूं लगा कि चांद आने को था यही तो असली कमाई है मेरी मैं इसे कब भला गंवाने को था मैं कहीं दूर निकल जाने को था फिर यूं लगा कि वो आने को था ©Umang Agrawal"

 मैं कहीं दूर निकल जाने को था
फिर यूं लगा कि वो आने को था

मैंने उम्मीद सारी छोड़ रखी थी
भूल गया कि कोई बुलाने को था

मेरी ग़ज़ल ने आंख भर दिए मेरे
वही, जिसपे वो मुस्कुराने को था

तमाम उम्र हूं मैं इंतज़ार में मशगूल
किसी बहाने वो मिलने आने को था

कर ली अमावस की स्याह रात से दोस्ती
फिर यूं लगा कि चांद आने को था

यही तो असली कमाई है मेरी
मैं इसे कब भला गंवाने को था

मैं कहीं दूर निकल जाने को था
फिर यूं लगा कि वो आने को था

©Umang Agrawal

मैं कहीं दूर निकल जाने को था फिर यूं लगा कि वो आने को था मैंने उम्मीद सारी छोड़ रखी थी भूल गया कि कोई बुलाने को था मेरी ग़ज़ल ने आंख भर दिए मेरे वही, जिसपे वो मुस्कुराने को था तमाम उम्र हूं मैं इंतज़ार में मशगूल किसी बहाने वो मिलने आने को था कर ली अमावस की स्याह रात से दोस्ती फिर यूं लगा कि चांद आने को था यही तो असली कमाई है मेरी मैं इसे कब भला गंवाने को था मैं कहीं दूर निकल जाने को था फिर यूं लगा कि वो आने को था ©Umang Agrawal

मैं कहीं दूर निकल जाने को था...

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