बिन दौलत के जिंदगी (दोहे)
बिन दौलत के जिंदगी, होती है दुश्वार।
ताने भी भरपूर हों, जीवन ये बेकार।।
बिन दौलत के जिंदगी, करती है हैरान।
मन मारे भी रह रहे, बिखरे हैं अरमान।।
कलह रहे घर-बार में, चुभते शूल समान।
जीवन यापन हो कठिन, जैसे कसी कमान।।
रह जाते कुछ काम हैं, बिन दौलत के जान।
होती है पीड़ा बड़ी, खोता खुद का मान।।
असमंजस में बीतता, जीवन का यह भार।
जैसे पड़ती हो कभी, कुदरत की है मार।।
कुछ करते अपराध भी, पाने की जो चाह।
गलत तरीके ढूंँढते, है जीवन की राह।।
बिन दौलत के जिंदगी, होती है अभिशाप।
इससे जो भी है घिरा, उसको है संताप।।
तड़प रही है जिंदगी, भरने को अब पेट।
कैसे भी कुछ भी मिले, करते हैं आखेट।।
बिन दौलत के जिंदगी, होती है गुमराह।
कदम भटकते राह से, कहीं न इसकी थाह।।
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देवेश दीक्षित
©Devesh Dixit
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बिन दौलत के जिंदगी (दोहे)
बिन दौलत के जिंदगी, होती है दुश्वार।
ताने भी भरपूर हों, जीवन ये बेकार।।
बिन दौलत के जिंदगी, करती है हैरान।