सुनो, अरे!सुनते क्यों नहीं कितनी बार कचौटा तुम्हे | हिंदी कविता Video

"सुनो, अरे!सुनते क्यों नहीं कितनी बार कचौटा तुम्हे मैंने, मर चुके हो क्या? हाँ, शायद मर ही चुके हो तुम, तुम्हारी सोच अति लोलुप हो चुकी है, तुम्हारी मन की आँखें अंधकारमय हो गई हैं, लालसा,स्वार्थ में लिप्त हो कर तुम्हारी संवेदनाये मर चुकी, सोचो तो ज़रा किस अंधी दौड़ में दौड़ रहे हो, सुन रहे हो अरे सुनो ये सीढ़ी नहीं ये इंसान हैं तुम्हारी तरह, जिन्हे तुम रोंधते हुए आगे बढ़ते चले जा रहे हो, वैसे ही जिंदगी की ज़रूरतें इन्हे घिस रही हैं, और तुम्हारी लालसा का वॉलेट तो भरता नहीं, क्या कहा मैं कौन हूँ? लो भला अपने अंदर की आवाज़ भी नहीं सुनते, मैं हूँ तुम्हारे तन रूपी वॉलेट का अनमोल धन, तुम्हारा अंतर्मन। ©Rajni Sardana "

सुनो, अरे!सुनते क्यों नहीं कितनी बार कचौटा तुम्हे मैंने, मर चुके हो क्या? हाँ, शायद मर ही चुके हो तुम, तुम्हारी सोच अति लोलुप हो चुकी है, तुम्हारी मन की आँखें अंधकारमय हो गई हैं, लालसा,स्वार्थ में लिप्त हो कर तुम्हारी संवेदनाये मर चुकी, सोचो तो ज़रा किस अंधी दौड़ में दौड़ रहे हो, सुन रहे हो अरे सुनो ये सीढ़ी नहीं ये इंसान हैं तुम्हारी तरह, जिन्हे तुम रोंधते हुए आगे बढ़ते चले जा रहे हो, वैसे ही जिंदगी की ज़रूरतें इन्हे घिस रही हैं, और तुम्हारी लालसा का वॉलेट तो भरता नहीं, क्या कहा मैं कौन हूँ? लो भला अपने अंदर की आवाज़ भी नहीं सुनते, मैं हूँ तुम्हारे तन रूपी वॉलेट का अनमोल धन, तुम्हारा अंतर्मन। ©Rajni Sardana

#वॉलेट

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