किताबें दिन बेफ़िक्री में ढल रहे है
फिर राते क्यो किसी की परवाह में जगी है...?
मुलाकातें,यादे और बाते हमारी
मानो कोई 'चाँद'
क्यो दिन-ब-दिन ये घट रही है..?
कुछ तुम कहो,तो कुछ हमसे भी कहा जाए
फिर क्यो सिर्फ मेरी 'कलम' ही सब कह रही है
वस्ल के ख्वाब,इंतजार औऱ हिज़्र की राते
सब मेरे ही साए में क्यो पल रही है...?
©poornima prajapat
#kitabein