अग्र छन्द*विधान~(तगण×7+ गुरु गुरु
)221 221 221 221 221 221 221 22
राखी कलाई बँधी आज देखो सजी माथ रोली सदा लाल टीका।
मीठा खिलाए लुटाए सदा प्रेम होने न पाए कभी प्रीत फीका।।
लेती बलाएं व देती दुआएं सदा वीर को और रश्में निभाए।
धागा नहीं डोर पक्की सदा है नहीं सूत कच्चा कभी भी बताए।।
पूजा करें दीप भी तो जलाए उतारे सदा आरती गीत गाये।
माँगे खुशी भाइयों की सदा नेह भी तो हमेशा जहां मेंì लुटाये।।
छोटी बने तो रहे लाडली और दीदी कहाए बड़ी जो रहे वो।
लाये खुशी मायके जो पधारे छिपाती सदा नैन आँसू बहे जो।।
वन्दना नामदेव
©Vandana Namdev
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