मन की पीड़ा बुनने से ही अच्छी संहिता बनती है, रब जब

"मन की पीड़ा बुनने से ही अच्छी संहिता बनती है, रब जब सब ज्ञान बताता है तब कोई गीता बनती है, इतना सरल नहीं होता है अक्षर में जीवन भरना पर सारे भाव सँजो लेते है तब एक कविता बनती है। चारण गोविन्द"

 मन की पीड़ा बुनने से ही अच्छी संहिता बनती है,
रब जब सब ज्ञान बताता है तब कोई गीता बनती है,
इतना सरल नहीं होता है अक्षर में जीवन भरना पर
सारे  भाव  सँजो  लेते  है तब एक कविता बनती है।

चारण गोविन्द

मन की पीड़ा बुनने से ही अच्छी संहिता बनती है, रब जब सब ज्ञान बताता है तब कोई गीता बनती है, इतना सरल नहीं होता है अक्षर में जीवन भरना पर सारे भाव सँजो लेते है तब एक कविता बनती है। चारण गोविन्द

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