“करना आता नहीं” करे ज़िद चाँद की वो, भूमि पर रहना

"“करना आता नहीं” करे ज़िद चाँद की वो, भूमि पर रहना आता नहीं, जगत को वो कहे जाहिल, जिसे पढ़ना आता नहीं| फिरे वो बाँटता, बस मुफ़्त का ही हरदम मशवरा, करे बेकार, हर एक बात, कुछ करना आता नहीं| भला सेना क्यों, अब बलि चढे, गैरों के वास्ते, खुले इस आसमाँ मे, साँस जब भरना आता नहीं| दिखा देगा भला कैसे, समुन्दर को वो आइना, दिले नादान के अंदर जिसे खुद तकना आता नहीं| सियासत खेल मजहब का, खिलाड़ी बेईमान है, धरम की राह दिखलाते मगर चलना आता नहीं। ©Harish Singla"

 “करना आता नहीं”

करे ज़िद चाँद की वो, भूमि पर रहना आता नहीं,
जगत को वो कहे जाहिल, जिसे पढ़ना आता नहीं|

फिरे वो बाँटता, बस मुफ़्त का ही हरदम मशवरा,
करे बेकार, हर एक बात, कुछ करना आता नहीं|

भला सेना क्यों, अब बलि चढे, गैरों के वास्ते,
खुले इस आसमाँ मे, साँस जब भरना आता नहीं|

दिखा देगा भला कैसे, समुन्दर को वो आइना, 
दिले नादान के अंदर जिसे खुद तकना आता नहीं|

सियासत खेल मजहब का, खिलाड़ी बेईमान है,
धरम की राह दिखलाते मगर चलना आता नहीं।

©Harish Singla

“करना आता नहीं” करे ज़िद चाँद की वो, भूमि पर रहना आता नहीं, जगत को वो कहे जाहिल, जिसे पढ़ना आता नहीं| फिरे वो बाँटता, बस मुफ़्त का ही हरदम मशवरा, करे बेकार, हर एक बात, कुछ करना आता नहीं| भला सेना क्यों, अब बलि चढे, गैरों के वास्ते, खुले इस आसमाँ मे, साँस जब भरना आता नहीं| दिखा देगा भला कैसे, समुन्दर को वो आइना, दिले नादान के अंदर जिसे खुद तकना आता नहीं| सियासत खेल मजहब का, खिलाड़ी बेईमान है, धरम की राह दिखलाते मगर चलना आता नहीं। ©Harish Singla

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