White कुछ ये भी.... दुख है ये अलग कि नाकाम हो ग | हिंदी Poetry

"White कुछ ये भी.... दुख है ये अलग कि नाकाम हो गए कितने पराए दर्द फिर आम हो गए अनजान मानकर रस्ते पर क्या चले उसके दिए हुक्म के इलहाम हो गए हैरा कि वो ही अब हर जख्म की दवा उसके ही फैसले के इकराम हो गए नफरत उगल रहा है जो रात और दिन कैसे रहे नसीब के वो गुलाम हो गए कैसा फकीर है जो आया कहां इधर मुफलिसी की चोट के मुकाम हो गए ©Shivam mishra"

 White कुछ ये भी....


दुख है ये अलग कि  नाकाम हो गए 
कितने पराए दर्द  फिर आम  हो गए 

अनजान मानकर रस्ते पर क्या चले 
उसके दिए हुक्म के इलहाम हो गए 


हैरा कि वो ही अब हर जख्म की दवा 
उसके ही फैसले के इकराम हो गए 


नफरत उगल रहा है जो रात और दिन
कैसे रहे नसीब के वो  गुलाम हो गए 


कैसा फकीर है जो आया कहां  इधर 
मुफलिसी की चोट के मुकाम हो गए

©Shivam mishra

White कुछ ये भी.... दुख है ये अलग कि नाकाम हो गए कितने पराए दर्द फिर आम हो गए अनजान मानकर रस्ते पर क्या चले उसके दिए हुक्म के इलहाम हो गए हैरा कि वो ही अब हर जख्म की दवा उसके ही फैसले के इकराम हो गए नफरत उगल रहा है जो रात और दिन कैसे रहे नसीब के वो गुलाम हो गए कैसा फकीर है जो आया कहां इधर मुफलिसी की चोट के मुकाम हो गए ©Shivam mishra

#GoodMorning
@life @Sircastic Saurabh sushil @Muna Uncle @Shri @Kshitija
@love

People who shared love close

More like this

Trending Topic