Alone चैन को जब आराम मिला, बेचैन हम हुए, बाबस्ता | English Love

"Alone चैन को जब आराम मिला, बेचैन हम हुए, बाबस्ता जिंदिगी से हुई, गुमसुम हम हुए, कमबख्त इस दिल का क्या करें, ये कही लगता ही नहीं, आसमां तुझसे पूछुं, कही ये मुहब्बत तो नहीं...! फासलें मिटे, नजदीकियों में इज़ाफ़ा है, जन्नत की हूर हो, कुदरत नें जिसे तराशा है, उसकी उन्हीं चंद सिमटी हुई यादों के साये में मशगूल हूँ, सितारे तुझसे पूछुं, कही ये मोहब्बत तो नहीं...! इल्तिज़ा बस यही है उस अक्स से, मुकम्मल हो दरख्वास्त मेरी इश्क़ के खातिर, बेपनाह हलचल होती है दिल के कोने में, ऐ चाँद ! बता कही ये मोहब्बत तो नहीं...! लाज़मी है की इश्क़ का होना, फितूर-ए-इश्क़ का फितरत में होना, टूटकर तुझमें खोना है, ये दिल कहता हैं, ऐ ख़ुदा ! अब तू ही बता कहीं ये मोहब्बत तो नहीं...! ख्वाबों में चुपके से आना तेरा, ख़्वाइशों को मुझसे फरमाना तेरा, मुफ़लिसी को दरकिनार कर, आशना पूरा करूँ, ऐ कायनात ! बता कहीं ये मोहब्बत तो नहीं...! दिल के काफी करीब हो तुम, नींद, चैन, मेरी आशिकी सब हो तुम, न जानें क्यूँ मनहूसियत सी लगती है तुम बिन, ऐ वादियों ! बता कहीं ये सच में मोहब्बत तो नही...! बेइंतहां लम्हें गुजारे तुम बिन, उन लम्हों नें बहुत रुलाया है, खुद को रोक न पाऊं, दीदार को तेरे, लाज़मी है कि शायद यही मुहब्बत है.7.. हाँ यही तो मोहब्बत है! - © रविन्द्र श्रीवास्तव "दीपक""

 Alone  चैन को जब आराम मिला, बेचैन हम हुए,
बाबस्ता जिंदिगी से हुई, गुमसुम हम हुए,
कमबख्त इस दिल का क्या करें, ये कही लगता ही नहीं,
आसमां तुझसे पूछुं, कही ये मुहब्बत तो नहीं...!

फासलें मिटे, नजदीकियों में इज़ाफ़ा है,
जन्नत की हूर हो, कुदरत नें जिसे तराशा है,
उसकी उन्हीं चंद सिमटी हुई यादों के साये में मशगूल हूँ,
सितारे तुझसे पूछुं, कही ये मोहब्बत तो नहीं...!

इल्तिज़ा बस यही है उस अक्स से,
मुकम्मल हो दरख्वास्त मेरी इश्क़ के खातिर,
बेपनाह हलचल होती है दिल के कोने में,
ऐ चाँद ! बता कही ये मोहब्बत तो नहीं...!

लाज़मी है की इश्क़ का होना,
फितूर-ए-इश्क़ का फितरत में होना,
टूटकर तुझमें खोना है, ये दिल कहता हैं,
ऐ ख़ुदा ! अब तू ही बता कहीं ये मोहब्बत तो नहीं...!

ख्वाबों में चुपके से आना तेरा,
ख़्वाइशों को मुझसे फरमाना तेरा,
मुफ़लिसी को दरकिनार कर, आशना पूरा करूँ,
ऐ कायनात ! बता कहीं ये मोहब्बत तो नहीं...!

दिल के काफी करीब हो तुम,
नींद, चैन, मेरी आशिकी सब हो तुम,
न जानें क्यूँ मनहूसियत सी लगती है तुम बिन,
ऐ वादियों ! बता कहीं ये सच में मोहब्बत तो नही...!

बेइंतहां लम्हें गुजारे तुम बिन,
उन लम्हों नें बहुत रुलाया है,
खुद को रोक न पाऊं, दीदार को तेरे,
लाज़मी है कि शायद यही मुहब्बत है.7..
हाँ यही तो मोहब्बत है!

- © रविन्द्र श्रीवास्तव "दीपक"

Alone चैन को जब आराम मिला, बेचैन हम हुए, बाबस्ता जिंदिगी से हुई, गुमसुम हम हुए, कमबख्त इस दिल का क्या करें, ये कही लगता ही नहीं, आसमां तुझसे पूछुं, कही ये मुहब्बत तो नहीं...! फासलें मिटे, नजदीकियों में इज़ाफ़ा है, जन्नत की हूर हो, कुदरत नें जिसे तराशा है, उसकी उन्हीं चंद सिमटी हुई यादों के साये में मशगूल हूँ, सितारे तुझसे पूछुं, कही ये मोहब्बत तो नहीं...! इल्तिज़ा बस यही है उस अक्स से, मुकम्मल हो दरख्वास्त मेरी इश्क़ के खातिर, बेपनाह हलचल होती है दिल के कोने में, ऐ चाँद ! बता कही ये मोहब्बत तो नहीं...! लाज़मी है की इश्क़ का होना, फितूर-ए-इश्क़ का फितरत में होना, टूटकर तुझमें खोना है, ये दिल कहता हैं, ऐ ख़ुदा ! अब तू ही बता कहीं ये मोहब्बत तो नहीं...! ख्वाबों में चुपके से आना तेरा, ख़्वाइशों को मुझसे फरमाना तेरा, मुफ़लिसी को दरकिनार कर, आशना पूरा करूँ, ऐ कायनात ! बता कहीं ये मोहब्बत तो नहीं...! दिल के काफी करीब हो तुम, नींद, चैन, मेरी आशिकी सब हो तुम, न जानें क्यूँ मनहूसियत सी लगती है तुम बिन, ऐ वादियों ! बता कहीं ये सच में मोहब्बत तो नही...! बेइंतहां लम्हें गुजारे तुम बिन, उन लम्हों नें बहुत रुलाया है, खुद को रोक न पाऊं, दीदार को तेरे, लाज़मी है कि शायद यही मुहब्बत है.7.. हाँ यही तो मोहब्बत है! - © रविन्द्र श्रीवास्तव "दीपक"

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