हद-ए-शहर से निकली तो गाँव गाँव चली। कुछ यादें मेरे

"हद-ए-शहर से निकली तो गाँव गाँव चली। कुछ यादें मेरे संग पांव पांव चली। सफर जो धूप का किया तो तजुर्बा हुआ। वो जिंदगी ही क्या जो छाँव छाँव चली।। ©Gireesh Jat"

 हद-ए-शहर से निकली तो गाँव गाँव चली।
कुछ यादें मेरे संग पांव पांव चली।
सफर जो धूप का किया तो तजुर्बा हुआ।
वो जिंदगी ही क्या जो छाँव छाँव चली।।

©Gireesh Jat

हद-ए-शहर से निकली तो गाँव गाँव चली। कुछ यादें मेरे संग पांव पांव चली। सफर जो धूप का किया तो तजुर्बा हुआ। वो जिंदगी ही क्या जो छाँव छाँव चली।। ©Gireesh Jat

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