पहली बारिश भींगा रही थी
मुझको नवोदय महक रहा था
मेरे अंदर का नवोदयंस
उन यादों में फुदक रहा था
बहक रहा था मेरा मन
कभी गरम हवाएं शीतल मन
सो के उठा दोपहरी में
तो बोला भाई चलो रिमिडियल
पर ! एहसास नवोदय का
जब जब मुझको हो जाता है
मेरे अंदर का रोम रोम
फूला नहीं समाता है
मैं यूं ही हंसता रहता हूं
बेवजह ही खुश रहता हूं
कोई पूछे क्या हुआ
तब मैं ये कहता हूं
अरे,उसकी याद आई है
खिड़की खोली शायद बारिश आई है
फिर देखा झड़ते पत्तो को
टूट रहे थे सूख रहे थे
याद नवोदय की आई
अब मेरे आंसू छूट रहे थे ।।
©Vimal Gupta