शराब जैसी हैं उसकी आँखें, है उसका चेहरा किताब जैसा
बहार उस की हसीं तबस्सुम, वो इक शगुफ़्ता गुलाब जैसा
वो ज़ौक़-ए-पिन्हाँ, वो सबसे वाहिद, वो एक इज़्ज़त-मआब जैसा
वो रंग-ए-महफ़िल, वो नौ बहाराँ, वो नख़-ब-नख़ है नवाब जैसा
उदास दिल की है सरख़ुशी वो, वो ज़िन्दगी के सवाब जैसा
वो मेरी बंजर सी दिल ज़मीं पर, बरसता है कुछ सहाब जैसा
कभी लगे माहताब मुझ को, कभी लगे आफ़ताब जैसा
हक़ीक़तों की तो बात छोड़ो, वो ख़्वाब में भी है ख़्वाब जैसा
न वो शफ़क़ सा, न बर्ग-ए-गुल सा, न रंग वो लाल-ए-नाब जैसा
जुदा जहां का वो रंग सबसे, है उसके लब का शहाब जैसा
उसी से शेर-ओ-सुख़न हैं मेरे, उसी से तख़्लीक़ मेरी सारी
वो अक्स-ए-रू है मेरी ग़ज़ल का, मेरे तसव्वुर के बाब जैसा
©Parastish
शगुफ़्ता - cheerful
ज़ौक़-ए-पिन्हाँ - hidden desire
वाहिद - unique
इज़्ज़त-मआब- most esteemed; respected
नख़-ब-नख़ - row by row, line by line
सरख़ुशी - happiness
सवाब - reward
सहाब - a cloud