अब तो ना कलम ना स्याही की है फिक्र
न एकांत की है न भीड़ की
न धूप की न छांव की
न शहर की न गांव की
बस उँगलियों पर हो जाता है
जिक्र
तुम्हारा
पर कभी सोचता भी हू
की डिजिटल सा तो नहीं हो गया
मेरा तुम्हारा ये प्यार
ये साथ
©Doctor R B
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