अपने संघर्षों को लिखना, जरूरी सा हो गया है।
भावी पीढ़ी को समझाना, अब कठिन हो गया है।
पढ़कर शायद कुछ समझे वो, अब आभास हो गया है।
मिठाई के डिब्बों को बनाते हुऐ, कुछ अपने लिए कर पाया हूं मैं।
माता के आशीर्वाद से, आज कुछ बन पाया हूं मैं।
कारें पोछीं, बोझा उठाया, तब यहां तक आ पाया हूं मैं।
माता के संघर्षों से, बन पाया हूं मैं।
बीजों की सफ़ाई करके, बोरों में पैकेट्स भरके, अब सही कर पाया हूं मैं।
शिक्षा की प्राप्ति की लिए, किस्मत से लड़पाया हूं मैं।
गुरुओं का सहयोग मिला, तब अजेय बन पाया हूं मैं।
इस आज के निर्माण के लिए, रातों से लड़ पाया हूं मैं।
ज्ञान के उद्देश्य से, एक शिष्य बन पाया हूं मैं।
बहुत से शिक्षकों के आशीर्वाद से, अपना भविष्य सुधार पाया हूं मैं।
©Ajay Shrivastava
#सीख