ग़म के दरिया में गुलों को यूं डुबाया हमने हाल दिल क | हिंदी शायरी

"ग़म के दरिया में गुलों को यूं डुबाया हमने हाल दिल का क्यूँ बहारों को सुनाया हमने बात जो दिल की लिखी, रात भर रोता ही रहा सुबह जो आँख खुली, कागज़ भी तर पाया हमने उनको क्या खबर थी मेरे आशियाने की ख़ता अपनी थी, पता क़ातिल को बताया हमने उनकी मर्जी है चाहे जितने भी अब टुकड़ें कर लें हाथ में दिल दिया, ख़ंजर भी थमाया हमने यूँ होटों से लगा के ना पिला जहर मुझे इल्तिज़ा मय ने की, जब जाम उठाया हमने बेहिस-ओ-हरकत है वो, क्या मुझे संभालेगा एक मयकश को है क्यूँ दोस्त बनाया हमने।। ©Anoop Jadon"

 ग़म के दरिया में गुलों को यूं डुबाया हमने
हाल दिल का क्यूँ बहारों को सुनाया हमने

बात जो दिल की लिखी, रात भर रोता ही रहा
सुबह जो आँख खुली, कागज़ भी तर पाया हमने

उनको क्या खबर थी मेरे आशियाने की
ख़ता अपनी थी, पता क़ातिल को बताया हमने

उनकी मर्जी है चाहे जितने भी अब टुकड़ें कर लें
हाथ में दिल दिया, ख़ंजर भी थमाया हमने

यूँ होटों से लगा के ना पिला जहर मुझे
इल्तिज़ा मय ने की, जब जाम उठाया हमने

बेहिस-ओ-हरकत है वो, क्या मुझे संभालेगा
एक मयकश को है क्यूँ दोस्त बनाया हमने।।

©Anoop Jadon

ग़म के दरिया में गुलों को यूं डुबाया हमने हाल दिल का क्यूँ बहारों को सुनाया हमने बात जो दिल की लिखी, रात भर रोता ही रहा सुबह जो आँख खुली, कागज़ भी तर पाया हमने उनको क्या खबर थी मेरे आशियाने की ख़ता अपनी थी, पता क़ातिल को बताया हमने उनकी मर्जी है चाहे जितने भी अब टुकड़ें कर लें हाथ में दिल दिया, ख़ंजर भी थमाया हमने यूँ होटों से लगा के ना पिला जहर मुझे इल्तिज़ा मय ने की, जब जाम उठाया हमने बेहिस-ओ-हरकत है वो, क्या मुझे संभालेगा एक मयकश को है क्यूँ दोस्त बनाया हमने।। ©Anoop Jadon

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