मेरी फटी जेब से.......
वक़्त की सब रेजगारी छन गयी......
कुछ काग़ज़ात थे रिश्तों के.......
बस बचे रह गये......
घबरा के कुछ इस तरह जकॅड के रखा........
मुट्ठी में उन्हे........
जब खोल के देखा तो........
नॅमी से.......
कुछ लुद्गी सा तो रहा.......
लिखा हुआ जो था.....
सब.....
बह गया.......
18/1/2014