सड़क किनारे फुटपाथ पर एक बचपन पलता है,
आसमां की छत के नीचे, कंक्रीट के बिस्तर पर एक बच्चा सोता है।
मिले हुए कपड़े , बचे हुए खाने पर उसका जीवन चलता है,
होश संभालते भीख माँगता, वो अभी घुटनो के बल चलता है।
मजदूरी करके, भीख माँगकर उसका पेट पलता है,
गिरते, पड़ते, ताने सुनते उसका दिन ऐसे ही निकलता है।
हमारे कन्धे पर 'स्कूल के बस्ते' ,वो 'कचरे के थैले' लादे चलता है।
हम तिरंगा लहराकर वो तिरंगा बेचकर स्वतंत्रता दिवस मनाता है।
बाल मन मे हजार उमंगे लाखो सपने लिए चलता है,
मगर उसका बचपन ऐसी ही दुख की घटाओं मे निकलता है।
मिल जाये थोड़ा सबका प्यार और साथ,
वो आसमां मे सबसे ऊंचा उड़कर दिखायेगा।
मातृभूमि का हर कर्तव्य जी जान से निभाएगा।
©यशस्वी तिवारी
#Childhood