मेरा मन कभी-कभी सोचता हूं मैं ना जाने कितने दूर हू
"मेरा मन कभी-कभी सोचता हूं मैं ना जाने कितने दूर हूं मैं सब्र का इंतजार था पर किस दुनिया में खोए हैं हम एक लम्हा और एक तन्हा दोनों करीब खड़ा है यही मेरा मन है"
मेरा मन कभी-कभी सोचता हूं मैं ना जाने कितने दूर हूं मैं सब्र का इंतजार था पर किस दुनिया में खोए हैं हम एक लम्हा और एक तन्हा दोनों करीब खड़ा है यही मेरा मन है