आवश्यकताओं के बोझ तले ,
दबी जा रही हूं मैं ।
मैं पृथ्वी हूं, अपनों के आघात से ,
मरी जा रही हूं मैं ।।
अपनी आवश्यकता के भूख पर ,
जो ना तुम लगाम लगाओगे ।
मैं कह देती हूं ,
एक दिन तुम भी मिट जाओगे ।
ऐ मानव , एक दिन तुम भी मिट जाओगे ।।
------ सौरभ मिश्रा (सुगंध)
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