हाय! डिजिटल युग ने छीनी है हमारी सादगी। भावनाएँ सु | हिंदी कविता

"हाय! डिजिटल युग ने छीनी है हमारी सादगी। भावनाएँ सुप्त हैं, रोबोट की मेधा जगी। अब धरातल छोड़कर, संसार सोशल हो गए। द्वार मन के, प्रीत के संचार सोशल हो गए। क्षण बधाई, क्षण करुणता, हाय! कैसी दिल्लगी? भावनाएँ सुप्त हैं, रोबोट की मेधा जगी। इक तरफ है जन्मदिन तो इक तरफ अर्थी चली। दूँ किसे शुभकामना या सांत्वना दुःख की भली। क्षण में सुख दर्शा दिया, ना शोक में घड़ियाँ लगी। भावनाएँ सुप्त हैं, रोबोट की मेधा जगी। :-✍️ गणेश शर्मा 'विद्यार्थी' ©गणेश"

 हाय! डिजिटल युग ने छीनी है हमारी सादगी।
भावनाएँ सुप्त हैं, रोबोट की मेधा जगी।

अब धरातल छोड़कर, संसार सोशल हो गए।
द्वार मन के, प्रीत के संचार सोशल हो गए।
क्षण बधाई, क्षण करुणता, हाय! कैसी दिल्लगी?
भावनाएँ सुप्त हैं, रोबोट की मेधा जगी।

इक तरफ है जन्मदिन तो इक तरफ अर्थी चली।
दूँ किसे शुभकामना या सांत्वना दुःख की भली।
क्षण में सुख दर्शा दिया, ना शोक में घड़ियाँ लगी।
भावनाएँ सुप्त हैं, रोबोट की मेधा जगी।

:-✍️ गणेश शर्मा 'विद्यार्थी'

©गणेश

हाय! डिजिटल युग ने छीनी है हमारी सादगी। भावनाएँ सुप्त हैं, रोबोट की मेधा जगी। अब धरातल छोड़कर, संसार सोशल हो गए। द्वार मन के, प्रीत के संचार सोशल हो गए। क्षण बधाई, क्षण करुणता, हाय! कैसी दिल्लगी? भावनाएँ सुप्त हैं, रोबोट की मेधा जगी। इक तरफ है जन्मदिन तो इक तरफ अर्थी चली। दूँ किसे शुभकामना या सांत्वना दुःख की भली। क्षण में सुख दर्शा दिया, ना शोक में घड़ियाँ लगी। भावनाएँ सुप्त हैं, रोबोट की मेधा जगी। :-✍️ गणेश शर्मा 'विद्यार्थी' ©गणेश

#डिजिटल #भावनाएं

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