पीले पलाश के गंधहीन फूल से मेरे भाव जलते जंगल की | हिंदी Poetry

"पीले पलाश के गंधहीन फूल से मेरे भाव जलते जंगल की सी तपन रातों का अकेलापन अनगिनत रतजगे और न जाने कितनी करवटे तुम से मिल कर... इतना कुछ पाया मैंने ©हिमांशु Kulshreshtha"

 पीले पलाश के 
गंधहीन फूल से मेरे भाव 
जलते जंगल की सी तपन 
रातों का अकेलापन 
अनगिनत रतजगे
और न जाने कितनी करवटे
तुम से मिल कर... 
इतना कुछ पाया मैंने

©हिमांशु Kulshreshtha

पीले पलाश के गंधहीन फूल से मेरे भाव जलते जंगल की सी तपन रातों का अकेलापन अनगिनत रतजगे और न जाने कितनी करवटे तुम से मिल कर... इतना कुछ पाया मैंने ©हिमांशु Kulshreshtha

इतना कुछ दिया....

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