सिफ़त ये दीप की इन्सान में भी आजाए जला के खुद को | हिंदी Shayari

"सिफ़त ये दीप की इन्सान में भी आजाए जला के खुद को ज़माने को रौशनी देना। (मेहरबान अमरोहवी) ©Meharban Amrohvi"

 सिफ़त ये दीप की इन्सान में भी आजाए

जला के खुद को ज़माने को रौशनी देना।

(मेहरबान अमरोहवी)

©Meharban  Amrohvi

सिफ़त ये दीप की इन्सान में भी आजाए जला के खुद को ज़माने को रौशनी देना। (मेहरबान अमरोहवी) ©Meharban Amrohvi

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