मेरी चाहत तुमसे है जन्मों की, मैं इसमें कहीं खो जाऊं !
तुम दर्द ए हाल सुनाओ अपना, मैं तुम्हारा हो जाऊं !
समंदर सा मौन रहो तुम, मैं लहरों सा उसमें खो जाऊं !
आखों के झरनों से बहता दरिया, मैं नदी सा उसमें मिल जाऊं !
पर्वत सा अडिग रहूं सुख दुख में, बादल बन बरस जाऊं !
तुम धरा बन सृजन करो नव रस का, मैं तुम में समा जाऊं !
तुम्हारी निगाहों की किरण छुए जब रूह को, बर्फ बन पिघल जाऊं !
खुशियों से भर दूं दामन तुम्हारा, मैं बूढी दीवाली सा तुम्हें मनाऊं !
तुम्हारी झील सी आंखों की गहराई में खोकर, मैं उनमें डूब जाऊं !
हो इस कदर इश्क मुझे कि, जन्मों जन्मों तक मैं तुम्हारा हो जाऊं !
©Thakur Vivek Krishna
#चाहत