गीत :-
आजादी का दिवस मनाऊँ ,भूखा अपना लाल सुलाऊँ ।
कर्ज बैंक का सर के ऊपर, खून बेचकर उसे चुकाऊँ ।।
आजादी का दिवस मनाऊँ....
सरकारें करती मनमानी ,
पीने का भी छीने पानी ।
कैसे जीते हैं हम निर्धन ,
कैसे तुमको व्यथा सुनाऊँ ।। आजादी का दिवस मनाऊँ...
मैं ही एक नहीं हूँ निर्धन ,
आटा दाल न होता ईर्धन ।
जन-जन का मैं हाल सुनाऊँ ,
आओ चल कर तुम्हें दिखाऊँ ।। आजादी का दिवस मनाऊँ...
शिक्षा भी व्यापार हुई है ,
महँगी सब्जी दाल हुई है
आमद हो गई है आज चव्न्नी,
कैसे घर का खर्च चलाऊँ । आजादी का दिवस मनाऊँ...
सभी स्वस्थ सेवाएं महँगी ,
जीवन की घटनाएं महँगी ।
आती मौत न जीवन को,
फंदा अपने गले लगाऊँ ।। आजादी का दिवस मनाऊँ...
ज्यादा हुआ दूध उत्पादन,
बिन पशु के आ जाता आँगन ।
किसको दर्पण आज दिखाऊँ
दिल कहता शामिल हो जाऊँ ।। आजादी का दिवस मनाऊँ.....
आजादी का दिवस मनाऊँ ,भूखा अपना लाल सुलाऊँ ।
महेन्द्र सिंह प्रखर
©MAHENDRA SINGH PRAKHAR
गीत :-
आजादी का दिवस मनाऊँ ,
भूखा अपना लाल सुलाऊँ ।
कर्ज बैंक का सर के ऊपर,