घोर निराशा के बादलों में से कोई उम्मीदों का सूरज निकलेगा,
अंधेरों में कोई तो जुगनू रास्ता दिखाएगा,
अस्त होते सूरज के साथ ही पस्त नहीं होना मुझे
गिरकर फिर से सम्भल जाना तो पड़ेगा,
घात लगाकर विश्वासघात करने वालों की भीड़ से
सफेद कुर्ते सा चरित्र बचा के निकलना है,
मिल ही जायेगा डूबते को किसी तिनके का सहारा
किनारा तो पार करके ही मरना है,
परिस्थितियां बेशक बद से बदतर हो जाएं
हौंसला किसी भी हालत में नहीं छोड़ना है,
ओट नहीं चाहिये मुझे किसी आशियाने की,
मुझे तो इस कमबख्त तूफान का रुख मोड़ना है,
दौड़ना है बहुत लंबा अभी तो
ये दुर्गम पथ थोड़े ना मुझे डरा देगा,
रख यकीं खुद पर तू सेंटी
घोर निराशा के बादलों में से कोई उम्मीदों का सूरज निकलेगा
©Senti Saharan
दुःसाहस