जख्म देकर मरहम लगाना जमाने का दस्तूर सा लगता है, ह | हिंदी शायरी
"जख्म देकर मरहम लगाना जमाने का दस्तूर सा लगता है,
हमारे अल्फाज़ों में छुपा आह अब मशहूर सा लगता है।
जिस पंछी ने खुले आसमान का ख्वाब दिखाया था मुझे,
पिंजरे में बंद आज वो कितना मजबूर सा लगता है।।
- Kumar Abhi"
जख्म देकर मरहम लगाना जमाने का दस्तूर सा लगता है,
हमारे अल्फाज़ों में छुपा आह अब मशहूर सा लगता है।
जिस पंछी ने खुले आसमान का ख्वाब दिखाया था मुझे,
पिंजरे में बंद आज वो कितना मजबूर सा लगता है।।
- Kumar Abhi