चलो आज कहीं दूर चलते हैं
अधूरे ख्वाब फिर से बुनते हैं
और मुद्दत हुई तुम्हें देखे हुए
इस दिल में झांक तुमसे मिलते हैं
अरे तुम तो अब अपने से लग रहे हो
गालों की लाली में तुम ही रस रहे हो
शायद मैं अब बहुत पीछे आ गई
तुम फिर क्यों इस रूह में बस रहे हो
अब हम यहां से वापस कैसे जाएंगे
जो तुम चाहते थे बन कैसे पाएंगे
कितनी नासमझ हूं मैं,याद करते-करते
सोचती हूं अब तुम्हे भूल कैसे पाएंगे
©Khushi Kashyap
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