Criticisms झूठ जो बुराई के संदर्भ पर कही जाये चा | हिंदी कविता

"Criticisms झूठ जो बुराई के संदर्भ पर कही जाये चाहे वो बुराई की रक्षा हेतू हों,या अपने स्वार्थ हेतू हों, या सजा से बचवचाव हेतू, या अपने वर्चस्व को बनाये रखने हेतू, या तो संसार के विध्वंस हेतू हों, या फिर समाज के शोषण हेतू हों वैसे झूठ का स्वरुप बड़ा ही भयावह, और जानलेवा होता हैं क्युँकि वैसा झूठ औरों के लिए तो हानिकारक और अन्यायपूर्ण सिद्ध होगा ही, साथ ही ये, झूठ बोलने वाले के भीतर शंका, अविश्वास, मानसिक तनाव और भय को जन्म देता हैं क्युँकि उसे सदा स्वयं के पकड़े जाने का अतिशय भय होता हैं जिससे बचने हेतू वह नई नई झूठी कहानिया गढ़ता रहता हैं, जिससे वह एक ही व्यक्ति से जितनी बार मिलता हैं,तो यदि एक ही तथ्यात्मक सवाल उससे किये जाये तो वह उलझ जाता है सहम जाता हैं क्युँकि वह किसी झूठे तथ्य को लम्बे समय तक याद नहीं रख पाता हैं, पर अपने भय, निर्बलता और झूठ को छिपाने के लिए जिस झूठे तथ्य को पेश करता है उस वजह से वह अपने ही झूठ में फँसता हुआ प्रतीत होता हैं पर जो झूठ किसी अच्छाई के संदर्भ में कही जाये, चाहे वो परोपकार हों, प्रेम हों, परमार्थ हों, कल्याण हों, या जिसमें किसी का हित छिपा हों, जिसमें संसार का उत्थान छिपा हों,जिससे समाज की रक्षा सम्भव हों, जो किसी के हृदय को शांति, सहानुभूति, दे सके, जो किसी के दुःख को कम कर सके, ऐसे झूठ का स्वरुप विराट होता हैं ये कड़वे सच की दुखद, शोकपूर्ण,पीड़ाजनक अनुभूति और भयानक और जानलेवा व्यथा की संजीवनी हैं जो किसी के प्राणो की रक्षा करने में और एक नया जीवन प्रदान करने में सहायक है, ऐसे झूठ की प्रवृति अत्यंत सुखदायक हैं,जो बोलने वाले और सुनने वाले दोनों को मन की शांति प्रदान करता है। कभी अल्प समय तो कभी लम्बे समय तक के लिए यह सार्थक भी सिद्ध हों जाता हैं तो आप किस सन्दर्भ में झूठ बोलना चाहते हैं. निर्णय आपका है ©Priya Kumari Niharika"

 Criticisms   झूठ जो बुराई के संदर्भ पर कही जाये
चाहे वो बुराई की रक्षा हेतू हों,या अपने स्वार्थ हेतू हों,
या सजा से बचवचाव हेतू, या अपने वर्चस्व को बनाये रखने हेतू,
या तो संसार के विध्वंस हेतू हों, या फिर समाज के शोषण हेतू हों
 वैसे झूठ का स्वरुप बड़ा ही भयावह, और जानलेवा होता हैं
क्युँकि वैसा झूठ औरों के लिए तो हानिकारक और अन्यायपूर्ण सिद्ध होगा ही, साथ ही
ये, झूठ बोलने वाले के भीतर शंका, अविश्वास, मानसिक तनाव और
भय को जन्म देता हैं क्युँकि उसे सदा स्वयं के पकड़े जाने का अतिशय भय होता हैं
जिससे बचने हेतू वह नई नई झूठी कहानिया गढ़ता रहता हैं,
 जिससे वह एक ही व्यक्ति से जितनी बार मिलता हैं,तो यदि
एक ही तथ्यात्मक सवाल उससे किये जाये तो वह उलझ जाता है
सहम जाता हैं क्युँकि वह किसी झूठे तथ्य को लम्बे समय तक याद नहीं रख पाता हैं,
पर अपने भय, निर्बलता और झूठ को छिपाने के लिए जिस झूठे तथ्य को पेश करता है
उस वजह से वह अपने ही झूठ में फँसता हुआ प्रतीत होता हैं पर
जो झूठ किसी अच्छाई के संदर्भ में कही जाये, चाहे वो परोपकार हों,
 प्रेम हों, परमार्थ हों, कल्याण हों, या जिसमें किसी का हित छिपा हों,
जिसमें संसार का उत्थान छिपा हों,जिससे समाज की रक्षा सम्भव हों,
जो किसी के हृदय को शांति, सहानुभूति, दे सके, जो किसी के दुःख को कम कर सके,
 ऐसे झूठ का स्वरुप विराट होता हैं ये कड़वे सच की दुखद, शोकपूर्ण,पीड़ाजनक अनुभूति
और भयानक और जानलेवा व्यथा की संजीवनी हैं जो किसी के प्राणो की रक्षा
 करने में और एक नया जीवन प्रदान करने में सहायक है,
ऐसे झूठ की प्रवृति अत्यंत सुखदायक हैं,जो बोलने वाले और सुनने वाले दोनों को
मन की शांति प्रदान करता है। कभी अल्प समय तो कभी
लम्बे समय तक के लिए यह सार्थक भी सिद्ध हों जाता हैं
तो आप किस सन्दर्भ में झूठ बोलना चाहते हैं. निर्णय आपका है

©Priya Kumari   Niharika

Criticisms झूठ जो बुराई के संदर्भ पर कही जाये चाहे वो बुराई की रक्षा हेतू हों,या अपने स्वार्थ हेतू हों, या सजा से बचवचाव हेतू, या अपने वर्चस्व को बनाये रखने हेतू, या तो संसार के विध्वंस हेतू हों, या फिर समाज के शोषण हेतू हों वैसे झूठ का स्वरुप बड़ा ही भयावह, और जानलेवा होता हैं क्युँकि वैसा झूठ औरों के लिए तो हानिकारक और अन्यायपूर्ण सिद्ध होगा ही, साथ ही ये, झूठ बोलने वाले के भीतर शंका, अविश्वास, मानसिक तनाव और भय को जन्म देता हैं क्युँकि उसे सदा स्वयं के पकड़े जाने का अतिशय भय होता हैं जिससे बचने हेतू वह नई नई झूठी कहानिया गढ़ता रहता हैं, जिससे वह एक ही व्यक्ति से जितनी बार मिलता हैं,तो यदि एक ही तथ्यात्मक सवाल उससे किये जाये तो वह उलझ जाता है सहम जाता हैं क्युँकि वह किसी झूठे तथ्य को लम्बे समय तक याद नहीं रख पाता हैं, पर अपने भय, निर्बलता और झूठ को छिपाने के लिए जिस झूठे तथ्य को पेश करता है उस वजह से वह अपने ही झूठ में फँसता हुआ प्रतीत होता हैं पर जो झूठ किसी अच्छाई के संदर्भ में कही जाये, चाहे वो परोपकार हों, प्रेम हों, परमार्थ हों, कल्याण हों, या जिसमें किसी का हित छिपा हों, जिसमें संसार का उत्थान छिपा हों,जिससे समाज की रक्षा सम्भव हों, जो किसी के हृदय को शांति, सहानुभूति, दे सके, जो किसी के दुःख को कम कर सके, ऐसे झूठ का स्वरुप विराट होता हैं ये कड़वे सच की दुखद, शोकपूर्ण,पीड़ाजनक अनुभूति और भयानक और जानलेवा व्यथा की संजीवनी हैं जो किसी के प्राणो की रक्षा करने में और एक नया जीवन प्रदान करने में सहायक है, ऐसे झूठ की प्रवृति अत्यंत सुखदायक हैं,जो बोलने वाले और सुनने वाले दोनों को मन की शांति प्रदान करता है। कभी अल्प समय तो कभी लम्बे समय तक के लिए यह सार्थक भी सिद्ध हों जाता हैं तो आप किस सन्दर्भ में झूठ बोलना चाहते हैं. निर्णय आपका है ©Priya Kumari Niharika

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