"دوست
दीदार का मोहताज नहीं मेरा इश्क़,
हर्फ़ हर्फ़ लिख लेता हूँ उसे मैं।
फ़ासले भले लाख हों हमारे
धड़कनों में अपनी सुन लेता हूँ उसे मैं।
ज़िंदगी ना जाने कैसी होगी उसके बिना,
इसीलिए हर एक पल में उसे जी लेता हूँ मैं..."
دوست
दीदार का मोहताज नहीं मेरा इश्क़,
हर्फ़ हर्फ़ लिख लेता हूँ उसे मैं।
फ़ासले भले लाख हों हमारे
धड़कनों में अपनी सुन लेता हूँ उसे मैं।
ज़िंदगी ना जाने कैसी होगी उसके बिना,
इसीलिए हर एक पल में उसे जी लेता हूँ मैं...