कैसे दोष देता उसे
की उसने मुझसे बेवफाई की है ..!
उसे पता था कि कभी
एक न होंगें हमदोनों
जानबूझकर मुझसे जुदाई की है ..!!
मैं तड़प रहा उसकी यादों में
वो जल रही विरह की आगों में ..!
यूं मानो फूल मुरझा रहा हो बागों में
तेल बिन बाती फरफरा रही चरागों में ..!!
डर था उन्हें घरवार से
मैं नहीं डरता परिवार से ..!
प्यार किया था प्यार से
फिर डरना क्या संसार से ..!!
बिछड़ने को मजबूर किया उसने
मैंने भी कैद से उसे रिहाई की है ..!
तन्हा छोड़ दी तो अब तन्हा ही रहो
तन्हाई ने हमारी जग-हंसाई की है ..!!
भला कैसे दोष देता उसे "प्रताप"
की उसने मुझसे बेवफाई की है ..!!
©Shashi Ranjan Pratap Singh
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