आज लिखने को अल्फाज नहीं
ऐतनान से बैठा हूं क्या लिखूं ,हुआ भी कुछ खास नहीं
चंद लम्हे खुद से बाते तो करे ,पुछु जरा क्या इतना भी फुरसत रहना है सही
तभी आवाज आई मुझे लगा मन की है,पर याद आया रोज़ जैसे पिताजी तो नहीं
आंख खुली वो सामने मुस्कुराते खड़े थे ,
उन्होंने मां से कहा कचरे से लाए थे नालायक को आज भी पड़ा है वहीं।।
©jay prakash pandey
किस किस के साथ होता है ऐसा