ऐ खिल के मेरे मन की गुलाब तू बन जा। ख्वाबो की एहसा | हिंदी कविता

"ऐ खिल के मेरे मन की गुलाब तू बन जा। ख्वाबो की एहसास बन दिल में तू आ जा।। स्वप्न में तू रूप की मलिका बन आ जा। फूलों की गंध बन नींदों में समा जा।। ऐ खिल के मेरे मन की गुलाब तू बन जा। फूलों की कलियाँ बन गले से लग जा। सुगंध की बयार बन मन में बहा जा।। प्रेम की झड़ी चित्त से लगा जा। हीया से लग जा तन में समा जा।। ऐ खिल के मेरे मन की गुलाब तू बन जा। नयनों की चमक बन तू स्वप्नो में आ जा। स्नेह की लहर बन उर से लगा जा।। दिल के करीब आ तू बाँहों में आ जा। सरिता की नीर बन मेरे आँगन तू आ जा।। ऐ खिल के मेरे मन की गुलाब तू बन जा। प्रेमों की मंजरी बन मंजर तू खिला जा। नये नये कोपल बन ह्रदय से लग जा।। कोयल की कूक बन मन को तू भा जा। आ जा प्राणों में आ जा कलेजा में समा जा।। ऐ खिल के मेरे मन की गुलाब तू बन जा। ©संगीत कुमार"

 ऐ खिल के मेरे मन की गुलाब तू बन जा।
ख्वाबो की एहसास बन दिल में तू आ जा।।
स्वप्न में तू रूप की मलिका बन आ जा।
फूलों की गंध बन नींदों में समा जा।।
ऐ खिल के मेरे मन की गुलाब तू बन जा।
फूलों की कलियाँ बन गले से लग जा।
सुगंध की बयार बन मन में बहा जा।।
प्रेम की झड़ी चित्त से लगा जा।
हीया से लग जा तन में समा जा।।
ऐ खिल के मेरे मन की गुलाब तू बन जा।
नयनों की चमक बन तू स्वप्नो में आ जा।
स्नेह की लहर बन उर से लगा जा।।
दिल के करीब आ तू बाँहों में आ जा।
सरिता की नीर बन मेरे आँगन तू आ जा।।
ऐ खिल के मेरे मन की गुलाब तू बन जा।
प्रेमों की मंजरी बन मंजर तू खिला जा।
नये नये कोपल बन ह्रदय से लग जा।।
कोयल की कूक बन मन को तू भा जा।
आ जा प्राणों में आ जा कलेजा में समा जा।।
ऐ खिल के मेरे मन की गुलाब तू बन जा।

©संगीत कुमार

ऐ खिल के मेरे मन की गुलाब तू बन जा। ख्वाबो की एहसास बन दिल में तू आ जा।। स्वप्न में तू रूप की मलिका बन आ जा। फूलों की गंध बन नींदों में समा जा।। ऐ खिल के मेरे मन की गुलाब तू बन जा। फूलों की कलियाँ बन गले से लग जा। सुगंध की बयार बन मन में बहा जा।। प्रेम की झड़ी चित्त से लगा जा। हीया से लग जा तन में समा जा।। ऐ खिल के मेरे मन की गुलाब तू बन जा। नयनों की चमक बन तू स्वप्नो में आ जा। स्नेह की लहर बन उर से लगा जा।। दिल के करीब आ तू बाँहों में आ जा। सरिता की नीर बन मेरे आँगन तू आ जा।। ऐ खिल के मेरे मन की गुलाब तू बन जा। प्रेमों की मंजरी बन मंजर तू खिला जा। नये नये कोपल बन ह्रदय से लग जा।। कोयल की कूक बन मन को तू भा जा। आ जा प्राणों में आ जा कलेजा में समा जा।। ऐ खिल के मेरे मन की गुलाब तू बन जा। ©संगीत कुमार

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