तुम क्या जानो मन पर इतना बोझा कैसे ढो लेते हैं
जब एकांत समय मिलता है चुपके चुपके रो लेते हैं,
मेरी आँख बहुत छोटी थी तुमने सपने बड़े दिखाए ,
अब आँखों में राजमहल ले फुटपाथों पर सो लेते हैं।
पागल है पपिहा वर्षों से स्वाति बूँद पर भटक रहा,
चतुर वही हैं हाथ जो हर बहती गंगा में धो लेते हैं
हम किसान के बेटे साहब दुःख सह लेने की आदत है,
हम भूखे रहकर भी जग की ख़ातिर फ़सलें बो लेते हैं
मोम कह रहा था वह ख़ुद को पत्थर था पत्थर निकला,
समझ न आया पत्थर कैसे मोम सरीखे हो लेते हैं।
©Virat Mishra
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