White 1222 1222 122 है आलीशान घर आँगन नहीं है , | हिंदी Poetry

"White 1222 1222 122 है आलीशान घर आँगन नहीं है , दुपट्टा है मगर दामन नहीं है । पहुँचना चाहती हूं उस खुदा तक ,पहुँचने का कोई साधन नहीं है। हमें बाहों में लेने से क्या होगा, जिसम तो है हमारा मन नहीं है। महज सिंदूर ही तो भर रखा है, सुहागन कर दे जो साजन नहीं है। हमें यूं देख कर तन्हा वो जालिम, सुकूं से है कोई शिकवन नहीं है। सिले हैं होंठ मैंने जब से अपने, किसी से अब कोई अनबन नहीं है। बड़े चैन- ओ- सुकूं से रहती हूं अब,है दिल लेकिन मेरी धड़कन नहीं है। उसे शर्माना अब आता कहां है ,तवायफ है कोई दुल्हन नहीं है। मेरी तकदीर में ही वो लिखा है , जिसे पाने का कोई मन नहीं है। रकीबों की कहानी तुम कहो बस,वो बहना है मेरी सौतन नहीं है। हमारे पास हैं जज्बात केवल, हमारे पास काला धन नहीं है। वो कैसा है बता पाना है मुश्किल ,जुबां तो है मगर वरनन नहीं है। हमारे प्यार के हम ही हैं दुश्मन, अऔर दूजी कोई अर्चन नहीं है । दुआओं की तलब होती है अक्सर, दुआओं से भरा दामन नहीं है। प्रज्ञा शुक्ला, सीतापुर ©#काव्यार्पण"

 White 

1222 1222 122
है आलीशान घर आँगन नहीं है , दुपट्टा है मगर दामन नहीं है ।
पहुँचना चाहती हूं उस खुदा तक ,पहुँचने का कोई साधन नहीं है।

हमें बाहों में लेने से क्या होगा, जिसम तो है हमारा मन नहीं है।

महज सिंदूर ही तो भर रखा है, सुहागन कर दे जो साजन नहीं है।

हमें यूं देख कर तन्हा वो जालिम, सुकूं से है कोई शिकवन नहीं है।

सिले हैं होंठ मैंने जब से अपने, किसी से अब कोई अनबन नहीं है।

बड़े चैन- ओ- सुकूं से रहती हूं अब,है दिल लेकिन मेरी धड़कन नहीं है।

उसे शर्माना अब आता कहां है ,तवायफ है कोई दुल्हन नहीं है।

मेरी तकदीर में ही वो लिखा है , जिसे पाने का कोई मन नहीं है।

रकीबों की कहानी तुम कहो बस,वो बहना है मेरी सौतन नहीं है।

हमारे पास हैं जज्बात केवल, हमारे पास काला धन नहीं है।

वो कैसा है बता पाना है मुश्किल ,जुबां तो है मगर वरनन नहीं है।

हमारे प्यार के हम ही हैं दुश्मन, अऔर दूजी कोई अर्चन नहीं है ।

दुआओं की तलब होती है अक्सर, दुआओं से भरा दामन नहीं है।

प्रज्ञा शुक्ला, सीतापुर

©#काव्यार्पण

White 1222 1222 122 है आलीशान घर आँगन नहीं है , दुपट्टा है मगर दामन नहीं है । पहुँचना चाहती हूं उस खुदा तक ,पहुँचने का कोई साधन नहीं है। हमें बाहों में लेने से क्या होगा, जिसम तो है हमारा मन नहीं है। महज सिंदूर ही तो भर रखा है, सुहागन कर दे जो साजन नहीं है। हमें यूं देख कर तन्हा वो जालिम, सुकूं से है कोई शिकवन नहीं है। सिले हैं होंठ मैंने जब से अपने, किसी से अब कोई अनबन नहीं है। बड़े चैन- ओ- सुकूं से रहती हूं अब,है दिल लेकिन मेरी धड़कन नहीं है। उसे शर्माना अब आता कहां है ,तवायफ है कोई दुल्हन नहीं है। मेरी तकदीर में ही वो लिखा है , जिसे पाने का कोई मन नहीं है। रकीबों की कहानी तुम कहो बस,वो बहना है मेरी सौतन नहीं है। हमारे पास हैं जज्बात केवल, हमारे पास काला धन नहीं है। वो कैसा है बता पाना है मुश्किल ,जुबां तो है मगर वरनन नहीं है। हमारे प्यार के हम ही हैं दुश्मन, अऔर दूजी कोई अर्चन नहीं है । दुआओं की तलब होती है अक्सर, दुआओं से भरा दामन नहीं है। प्रज्ञा शुक्ला, सीतापुर ©#काव्यार्पण

दुपट्टा है मगर दामन नहीं है : प्रज्ञा शुक्ला
#गजल #Kavyarpan #काव्यार्पण


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