पतझड़
पतली, सूखी हुई शाख़ से झुंझलाकर कर मुर्झाया पत्ता कहता है
"तेरे खुदगर्ज़ प्यार ने मुझे निचोड़ लिया नहीं तो मै भी माघ के महीने में झड़ा हुआ, उन्मुक्त पवन में उड़ रहा होता" ।
©Abhishek 'रैबारि' Gairola
पतझड़
पतली, सूखी हुई शाख़ से झुंझलाकर कर मुर्झाया पत्ता कहता है
"तेरे खुदगर्ज़ प्यार ने मुझे निचोड़ लिया नहीं तो मै भी माघ के महीने में झड़ा हुआ, उन्मुक्त पवन में उड़ रहा होता" ।
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