इश्क में डूबकर मैं बनारस हुआ।
तुम हो गंगा की धारा चली जा रही।।
मैं खड़ा देखता घाट की सीढ़ियां।
तुम हो चंचल मग्न में बही जा रही।।
इश्क में डूबकर मैं बनारस हुआ।।।
प्रेम की डोरी ऐसी बंधी है यहां...
मैं किनारों से देखूं तू जाए जहां
डूबकर तुझमे तुलसी सा पावन हुआ।
तुम तो अविरल हो मुझमे घुली जा रही।।
इश्क में डूबकर मैं बनारस हुआ।।
©Deepak Vishal
इश्क में डूबकर मैं बनारस हुआ।
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